This puja gives Special advantage for success and happiness of each and every member of the family. Chanting Navarna mantra brings protection and uniquely gives one strength, success and removes all fears.
Navarna Mantra is the most powerful mantra of Goddess Durga. Chanting the mantra correctly and doing anushthan of the mantra increases the confidence of the person. Goddess Durga becomes the protector and the devotee becomes fearless.
It is believed that by worshiping nine forms of Maa Durga, the devotee gets immense blessings of Maa with all happiness. Nine forms of Durga Maa are; Shailaputri, Brahmacharini, Chandraghanta, Kushmanda, Skandamata, Katyayani, Kaalratri, Mahagauri, and Siddhidatri.
Sat Chandi path is the biggest Durga Maa Puja, where 100 path/s of Durga Sapt Shati path are done by vedic pandit ji all 9days and gives complete results of this puja.
General procedure involved for this pooja is as under:
- Swasti Vachanam Mantra
- Sankalp
- Ganesh Puja
- Kalash Sthapana Pujan
- Durga Sapt Shati Path
- Navarna Mantra Sadhana
- Havan, Aarti and Prasad Distribution
Read More/Hindi
इस पूजा के महत्व
नवरात्रमें दुर्गा सप्तशती को पढ़ने अथवा सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। सप्तशती चंडी पाठ करने का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गासप्तशतीको भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए। दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, जिसमें 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। मुख्य रूप से ये तीन चरित्र हैं:
प्रथम चरित्र : प्रथम अध्याय : देवी महाकाली की स्तुति
मध्यम चरित्र : 2-4 अध्याय : देवी महालक्ष्मी की स्तुति
उत्तम चरित्र : 5-13 अध्याय : देवी महासरस्वती की स्तुति
जिस प्रकार वेद अनादि हैं, उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि ही है। व्यासजी ने मानवकल्याण मात्रा से ही मार्कण्डेयपुराण में इसका प्रकाशन किया है। मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है- शरद ऋतु के नवरात्र में जो मेरी माहात्म्य (दुर्गा सप्तशती) को भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा।
दुर्गा सप्तशती को सिद्ध करने की अनेक विधियां हैं जैसे की सामान्य विधि, वाकार विधि, संपुट पाठ विधि, सार्ध नवचण्डी विधि, शतचण्डी विधि।
नवार्ण मंत्र के प्रत्येक वर्ण का संबंध देवी दुर्गा की एक-एक शक्ति से है। ये शक्तियां हैं क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री। इनकी उपासना क्रमानुसार नवरात्रि के पहले दिन से लेकर नौवें दिन तक की जाती है।
“ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे”, नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है। नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्रि' को की जाती है।
नवरात्रि, वर्ष का सबसे अच्छा समय होता है I जब मां दुर्गा भक्तों के घर आती हैं और भक्तों को मां दुर्गा के नए रूप की पूजा करने का प्रतिदिन अवसर मिलता है। दुर्गा मां के नौ रूप हैं; शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ऐसी मान्यता है की मां के नौ रुपों की विधिवत पूजा करने से भक्त को मां का असीम आशीर्वाद मिलता है और हर खुशी I
शत चंडी पाठ का मुख्य उद्देश्य जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने के लिए देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना है।
दुर्गा माँ के नौ रूपों का विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है:
शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।
ब्रह्मचारिणी - जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।
चन्द्रघण्टा -भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में वाणी है।
कूष्माण्डा - अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।
स्कन्दमाता - पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
कात्यायनी- के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।
कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।
महागौरी -भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।
सिद्धिदात्री -भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
Read less