Gandmool Nakshatra Dosh Shanti Puja
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5001 )
Category : Ghar pe puja
WHY YOU NEED THIS POOJA
This Pooja is done for a person who is born in the Gand Mool Nakshatras. This pooja may be performed preferably within 27th day after the birth of the baby or later when the Moon comes to the birth nakshatra as soon as possible for Worshipping.
Depending on the degree of Moon at the time of Birth, it may cause danger to the baby, parents and maternal Uncle. Native may suffer serious physical and mental issues or financial problems throughout the life. Therefore, it is advisable that this pooja should be performed as early as possible so that the sweetness of baby becomes more sweeter day by day.
There are total 27 Nakshatras in Vedic Astrology. The Nakshatras ruled by Ketu and Mercury are known as Gand Mool Nakshatra.Out of 27 Nakshatras, Mool, Jyestha and Ashlesha Nakshatras are the main Mool Nakshatras and Ashwini, Revati and Magha are the subsidiary Mool Nakshatras. Thus, in total there are 6Mool Nakshatras. Gandmool puja is done by jaap of the particular nakshtra dosh as given below in the horoscope.
गंड मूल नक्षत्र शांति मंत्र
अश्विनी नक्षत्र (स्वामित्व अश्विनी कुमार) : ॐ अश्विनातेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वतीवीर्यम। वाचेन्द्रोबलेनेंद्राय दधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विनी कुमाराभ्यां नम:।। (जप संख्या 5,000)।
अश्लेषा (स्वामित्व सर्प): ॐ नमोस्तु सप्र्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनु: ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्य: स्प्र्पेभयो नम:।। ॐ सप्र्पेभ्यो नम:।। (जप संख्या 10,000)।
मघा (स्वामित्व पितर): ॐ पितृभ्य: स्वाधयिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम:। प्रपितामहेभ्य: स्वधा नम: अक्षन्नापित्रोमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्तपितर: पितर: शुन्धध्वम्।। ॐ पितृभ्यो नम:/पितराय नम:।। (जप संख्या 10,000)।
ज्येष्ठा (इन्द्र) : ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुह्न शूरमिन्द्रम् हृयामि शुक्रं पुरुहूंतमिन्द्र स्वस्तिनो मधवा धाक्षित्वद्र:।। ॐ शक्राय नम:।। (जप संख्या 5,000)।
मूल (राक्षस) : ॐ मातेव पुत्र पृथिवी पुरीष्यमणि स्वेयोनावभारुषा। तां विश्वेदेवर्ऋतुभि: संवदान: प्रजापतिविश्वकर्मा विमुच्चतु।। ॐ निर्ऋतये नम:।। (जप संख्या 5,000)।
रेवती (पूषा) : ॐ पूषन् तवव्रते वयं नरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इहस्मसि।। ॐ पूष्णे नम:। (जप संख्या 5,000)।
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इस पूजा के महत्व
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्रों को दोषकारी माना जाता है। 27 नक्षत्रों में से मूल, ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र हैं और अश्विनी, रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र हैं। मूल नक्षत्रों को सतैसा या गण्डात कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब किसी शिशु का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो इसको गंडमूल दोष कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में आचार्यों के अनुसार, इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातक को जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, उसे स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही समाज, करियर, नौकरी, विवाह, वित्त, संपत्ति, प्रत्यक्षवादी, मन एवं उसके जीवन के अन्य पहलू भी प्रभावित हो सकते हैं। बालक के माता-पिता, मामा, भाई-बहिनों और पति या पत्नी के जीवन पर भी इस दोष का कष्टकारी प्रभाव पड़ सकता है।
जातक के परिवार में दरिद्रता, और दुर्घटना का भी भय बना रह सकता है और जातक भाग्यहीन सा हो सकता है। ऐसे भी कहा जाता है कि यदि बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा न देखे और अपनी जेब में फिटकरी का एक टुकड़ा रख ले। गंडमूल शांति पूजा के बाद ही पिता अपने बच्चे को विधिवत पूजा करके ही देखें तो ज्यादा शुभ होगा।
इसलिए इस नक्षत्र में पैदा हुए शिशु और उसके परिजनों की भलाई के लिए गंडमूल शांति पूजा कराना अति आवश्यक है। इसे किसी विद्वान तथा योग्य पंडित द्वारा ही करवाना चाहिए। इस पूजा को जन्म के 27 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। यदि 27 दिन के भीतर न हो पाएं अथवा किसी कारण से गंडमूल दोष के बारे में आपको विलम्ब से पता चले तो भी आप इसकी शांति पूजा बिना देरी के उपयुक्त मुहूर्त पर करवा सकते हैं। शांति पूजा और यज्ञ के बाद ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना और उन्हें भोजन करवाना शुभ होता है।
जब कोई व्यक्ति पृथ्वी पर जन्म लेता है, तो चंद्रमा और अन्य ग्रहों में उसके विशिष्ट राशि चिन्ह होते हैं। इनका व्यक्ति के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। इन ग्रहों के अलावा, 27 नक्षत्र चंद्र पथ का विभाजन करते हैं। इनका भी व्यक्ति के जीवन पर एक अच्छा और शक्तिशाली प्रभाव होता है। कभी-कभी, यह नक्षत्र हानिकारक भी होते हैं। यह बहुत हद तक व्यक्ति की उदासी का भी कारण बन सकते हैं। यदि जन्म के दौरान चंद्रमा प्रबल होता है तो यह व्यक्ति के दृष्टिकोण, व्यक्तित्व, शारीरिक बनावट एवं भविष्य को प्रभावित करता है। जन्म नक्षत्र सोच की दिशा, भाग्य, प्रतिभा को नियंत्रित करता है। तथा व्यक्तित्व के अवचेतन प्रभावों को भी नियंत्रित करता है। नक्षत्र शांति पूजा नक्षत्रों के बुरे प्रभावों को दूर करने हेतु की जाती है।
ऐसे भी कहा जाता है कि अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए। अगर बच्चे की राशी मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे को हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं। अगर बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री उपासना अनुकूल होगी। अगर बच्चे की राशी कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिवजी की उपासना उत्तम रहेगी। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर भी हनुमान जी की उपासना करवाएं। अगर मीन राशि और रेवती नक्षत्र है तो गणेश जी की उपासना से लाभ होगा। अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है और आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करने से लाभ मिलता है। बुधवार के दिन हरी वस्तुओं का दान करने से लाभ मिलता है।
इस पूजा में संबंधित नक्षत्र से जुड़े मंत्र का कम से कम 5000 बार जप किया जाता है। पूजा में 27 अलग-अलग जगहों का पानी एकत्रित किया जाता है, 27 अलग-अलग पेड़ की लकड़ियों से हवन किया जाता है।
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