WHY YOU NEED THIS SANSKAR
Janeu Sanskar is one of the traditional Sanskars that marks the acceptance of a student by his Guru. Janeu Sanskar is also known as Yagnopavita sanskar or Upanayana, or poita or Bratabandha. The Janeu is the sacred thread, which is received by the boy during this ceremony, and he continues wearing from left shoulder to the right crossing the chest thereafter. Yagnopavit Sanskar should be performed at the age of 5 to 8 years for a Brahmin boy, from 6 to 11 for a Kshatriya, from 8 to 12 years for a Vaishya.
The sanskar is performed by panditji starting with Gauri Ganesh puja, Punyaha Vachan, Maha Sankalpam, Kalash puja, Upnayan, Yagnopavit dharan, Bhiksha karyakram and then the hawan is performed as per procedures. This may vary from place to place.
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विभिन्न संस्कारों में से, हिन्दू धर्म में एक संस्कार यज्ञोपवीत धारण करना भी है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद व्यक्ति को शक्ति के साथ ही शुद्ध चरित्र मिलता है और वह कर्तव्य परायणता के बोध से विभोर हो जाता है। यज्ञोपवीत आयुवर्धक, स्फूर्तिदायक, बंधन से छुड़ाने वाला और पवित्रता देने वाला है। यह बल और तेज भी देता है। इस यज्ञोपवीत के परम श्रेष्ठ तीन लक्ष्य हैं- सत्य व्यवहार की आकांक्षा, अग्नि के समान तेजस्विता और दिव्य गुणों की पवित्रता इसके द्वारा भली प्रकार प्राप्त होती है।
यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ के नाम से जानते हैं, यह कोई महज साधारण धागा नहीं है बल्कि तपस्वियों, सप्त ऋषि तथा देवगणों ने कहा है कि यज्ञोपवीत ब्राह्मण की शक्ति है। ब्राह्मणों का आभूषण है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य यह तीनों द्विज कहलाते हैं क्योंकि यज्ञोपवीत धारण करने से उनका दूसरा जन्म होता है। पहला जन्म माता के पेट से होता है, दूसरा जन्म यज्ञोपवीत संस्कार से होता है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि यज्ञोपवीत धारण करते समय जो वेदारम्भ कराया जाता है, वह गायत्री मंत्र से क राया जाता है। प्रत्येक द्विज को गायत्री मंत्र जानना उसी प्रकार अनिवार्य है जैसे कि यज्ञोपवीत धारण करना। यह गायत्री यज्ञोपवीत का जोड़ा ऐसा ही है जैसा लक्ष्मी−नारायण, सीता−राम, राधे−श्याम, प्रकृति−ब्रह्मा, गौरी−शंकर, नर−मादा का जोड़ा है। दोनों के सम्मिश्रण से ही पूर्ण इकाई बनती है।
यज्ञोपवीत धारण संबंधी कुछ नियम
− जन्म सूतक, मरण सूतक, मल−मूत्र त्यागते समय कान पर यज्ञोपवीत चढ़ाने में भूल होने के प्रायश्चित में उपाकर्म से, चार मास तक पुराना हो जाने पर, कहीं से टूट जाने पर जनेऊ उतार देना चाहिए। उतारने पर उसे जहां तहां नहीं फेंक देना चाहिए वरन किसी पवित्र स्थान पर नदी, तालाब या पीपल जैसे पवित्र वृक्ष पर विसर्जित करना चाहिए।
− ब्राह्मण बालक का 5 से 8 वर्ष तक, क्षत्रिय का 6 से 11 तक, वैश्य का 8 से 12 वर्ष तक की आयु में यज्ञोपवीत करा देना चाहिए।
− ब्राह्मण का वसंत ऋतु में, क्षत्रिय का ग्रीष्म में और वैश्य का उपवीत शरद ऋतु में होना चाहिए।
To be arranged by you (Devotee)
Hawan Samagri & Samidha, Gangajal, Roli-Moli, aam-patte, paan-patte-supari, Kapoor, Janeu, Agarbatti-Dhoop, Batti, Milk, curd, Cow Ghee, Honey, Sugar, Sweets, Haldi, Rice, Fruits, Flower, Mala, Nariyal, Kalash, Hawan Kund etc.